चश्म-ए-सवाल!

हाँ ऐ ग़रीब लड़की तू भीक माँगती है

चश्म-ए-सवाल तेरी कुछ कह के झुक गई है

तू भीक माँगती है शर्म-ओ-हया की मारी

और सर से ले के पा तक है कपकपी सी तारी

आँखों में है नमी सी आईना सी जबीं है

तुझ को गदागरी की आदत अभी नहीं है

क़िस्मत में गेसुओं की आईना है न शाना

शायद तिरी नज़र में तारीक है ज़माना

ये तेरा जिस्म-ए-नाज़ुक बोसीदा पैरहन में

जैसे गुल-ए-फ़सुर्दा उजड़े हुए चमन में

झुक जाएँ तेरे आगे शैतान की निगाहें

पर खा रही हैं तुझ को इंसान की निगाहें

पाकीज़गी पे तेरी सीता को प्यार आए

मासूमियत पे तुझ को मर्यम गले लगाए

हूरें लपक के चूमें, पाएँ क़दम जो तेरे

हर नक़्श-ए-पा पे तेरे सज्दे करें फ़रिश्ते

ऐ काश वो बताए है जिस की ये ख़ुदाई

ये चश्म-ए-नर्गिसी है या कासा-ए-गदाई!

लब हैं कि पत्थरों के टुकड़े जमे हुए हैं!

रुख़ हैं कि रहगुज़र के बुझते हुए दिए हैं!

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Chashm-e-sawal! In Hindi By Famous Poet Moin Ahsan Jazbi. Chashm-e-sawal! is written by Moin Ahsan Jazbi. Complete Poem Chashm-e-sawal! in Hindi by Moin Ahsan Jazbi. Download free Chashm-e-sawal! Poem for Youth in PDF. Chashm-e-sawal! is a Poem on Inspiration for young students. Share Chashm-e-sawal! with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.