'मोमिन' ख़ुदा के वास्ते ऐसा मकाँ न छोड़
दोज़ख़ में डाल ख़ुल्द को कू-ए-बुताँ न छोड़
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मेरे तग़ईर-ए-रंग को मत देख
वादे की जो साअत दम-ए-कुश्तन है हमारा
क्या जाने क्या लिखा था उसे इज़्तिराब में
उस नक़्श-ए-पा के सज्दे ने क्या क्या किया ज़लील
गो आप ने जवाब बुरा ही दिया वले
चल परे हट मुझे न दिखला मुँह
ताब-ए-नज़्ज़ारा नहीं आइना क्या देखने दूँ
नासेहा दिल में तो इतना तू समझ अपने कि हम
मैं अगर आप से जाऊँ तो क़रार आ जाए
हम समझते हैं आज़माने को
ने जाए वाँ बने है ने बिन जाए चैन है
उम्र तो सारी कटी इश्क़-ए-बुताँ में 'मोमिन'