नासेहा दिल में तो इतना तू समझ अपने कि हम
लाख नादाँ हुए क्या तुझ से भी नादाँ होंगे
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वादा-ए-वस्लत से दिल हो शाद क्या
दीदा-ए-हैराँ ने तमाशा किया
हँस हँस के वो मुझ से ही मिरे क़त्ल की बातें
ऐ आरज़ू-ए-क़त्ल ज़रा दिल को थामना
तासीर सब्र में न असर इज़्तिराब में
ताब-ए-नज़्ज़ारा नहीं आइना क्या देखने दूँ
ठानी थी दिल में अब न मिलेंगे किसी से हम
जलता हूँ हिज्र-ए-शाहिद ओ याद-ए-शराब में
वो आए हैं पशेमाँ लाश पर अब
कुछ क़फ़स में इन दिनों लगता है जी
एजाज़-ए-जाँ-दही है हमारे कलाम को
असर उस को ज़रा नहीं होता