हँस हँस के वो मुझ से ही मिरे क़त्ल की बातें
इस तरह से करते हैं कि गोया न करेंगे
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रोया करेंगे आप भी पहरों इसी तरह
उस ग़ैरत-ए-नाहीद की हर तान है दीपक
तुम मिरे पास होते हो गोया
बहर-अयादत आए वो लेकिन क़ज़ा के साथ
ले शब-ए-वस्ल-ए-ग़ैर भी काटी
ये उज़्र-ए-इम्तिहान-ए-जज़्ब-ए-दिल कैसा निकल आया
एजाज़-ए-जाँ-दही है हमारे कलाम को
बे-ख़ुद थे ग़श थे महव थे दुनिया का ग़म न था
है शर्म-ए-गुनह से जाँ कैसी बे-ताब
चल परे हट मुझे न दिखला मुँह
अफ़सोस शिकायत-ए-निहानी न गई