अफ़सोस शिकायत-ए-निहानी न गई
दिल पर से रक़ीब की गिरानी न गई
अल्ताफ़ थे बस कि रु-ब-रु-ए-दुश्मन
उस शोख़ से बद-गुमानी न गई
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उम्र तो सारी कटी इश्क़-ए-बुताँ में 'मोमिन'
किसी का हुआ आज कल था किसी का
बे-ख़ुद थे ग़श थे महव थे दुनिया का ग़म न था
वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो कि न याद हो
असर उस को ज़रा नहीं होता
राज़-ए-निहाँ ज़बान-ए-अग़्यार तक न पहुँचा
मोमिन ये असर सियाह-मस्ती का न हो
महशर में पास क्यूँ दम-ए-फ़रियाद आ गया
उस ग़ैरत-ए-नाहीद की हर तान है दीपक
मैं अगर आप से जाऊँ तो क़रार आ जाए
ठानी थी दिल में अब न मिलेंगे किसी से हम
हाल-ए-दिल यार को लिखूँ क्यूँकर