है शर्म-ए-गुनह से जाँ कैसी बे-ताब
पर ज़िक्र जहाँ हुआ, हुआ जी है ताब
या-रब कि मुअस्सर न हो कहना मेरा
या-रब है तिरा बंदा-ए-आसी बे-ताब
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इस वुसअत-ए-कलाम से जी तंग आ गया
माँगा करेंगे अब से दुआ हिज्र-ए-यार की
वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो कि न याद हो
आप की कौन सी बढ़ी इज़्ज़त
उस ग़ैरत-ए-नाहीद की हर तान है दीपक
ने जाए वाँ बने है ने बिन जाए चैन है
वादे की जो साअत दम-ए-कुश्तन है हमारा
तुम मिरे पास होते हो गोया
करता है क़त्ल-ए-आम वो अग़्यार के लिए
ता न पड़े ख़लल कहीं आप के ख़्वाब-ए-नाज़ में
थी वस्ल में भी फ़िक्र-ए-जुदाई तमाम शब
गो कि हम सफ़्हा-ए-हस्ती पे थे एक हर्फ़-ए-ग़लत