आप की कौन सी बढ़ी इज़्ज़त
मैं अगर बज़्म में ज़लील हुआ
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ऐ आरज़ू-ए-क़त्ल ज़रा दिल को थामना
शोख़ कहता है बे-हया जाना
है शर्म-ए-गुनह से जाँ कैसी बे-ताब
थी वस्ल में भी फ़िक्र-ए-जुदाई तमाम शब
सौदा था बला-ए-जोश पर रात
मैं भी कुछ ख़ुश नहीं वफ़ा कर के
ग़ैरों पे खुल न जाए कहीं राज़ देखना
'मोमिन' ख़ुदा के वास्ते ऐसा मकाँ न छोड़
ने जाए वाँ बने है ने बिन जाए चैन है
न करो अब निबाह की बातें
तुम मिरे पास होते हो गोया