ग़ैरों पे खुल न जाए कहीं राज़ देखना
मेरी तरफ़ भी ग़म्ज़ा-ए-ग़म्माज़ देखना
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तुम भी रहने लगे ख़फ़ा साहब
राज़-ए-निहाँ ज़बान-ए-अग़्यार तक न पहुँचा
महशर में पास क्यूँ दम-ए-फ़रियाद आ गया
हो गया राज़-ए-इश्क़ बे-पर्दा
ठानी थी दिल में अब न मिलेंगे किसी से हम
आँखों से हया टपके है अंदाज़ तो देखो
शोख़ कहता है बे-हया जाना
रोया करेंगे आप भी पहरों इसी तरह
ले शब-ए-वस्ल-ए-ग़ैर भी काटी
थी वस्ल में भी फ़िक्र-ए-जुदाई तमाम शब
कल तुम जो बज़्म-ए-ग़ैर में आँखें चुरा गए