एजाज़-ए-जाँ-दही है हमारे कलाम को
ज़िंदा किया है हम ने मसीहा के नाम को
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ग़ुस्सा बेगाना-वार होना था
थी वस्ल में भी फ़िक्र-ए-जुदाई तमाम शब
ग़ैरों पे खुल न जाए कहीं राज़ देखना
करता है क़त्ल-ए-आम वो अग़्यार के लिए
क्यूँ ज़र्द है रंग किस लिए आँसू लाल
चल दिए सू-ए-हरम कू-ए-बुताँ से 'मोमिन'
है कुछ तो बात 'मोमिन' जो छा गई ख़मोशी
सौदा था बला-ए-जोश पर रात
मज्लिस में मिरे ज़िक्र के आते ही उठे वो
क़हर है मौत है क़ज़ा है इश्क़
रोया करेंगे आप भी पहरों इसी तरह