है कुछ तो बात 'मोमिन' जो छा गई ख़मोशी
किस बुत को दे दिया दिल क्यूँ बुत से बन गए हो
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उलझा है पाँव यार का ज़ुल्फ़-ए-दराज़ में
गो आप ने जवाब बुरा ही दिया वले
माशूक़ से भी हम ने निभाई बराबरी
करता है क़त्ल-ए-आम वो अग़्यार के लिए
तुम मिरे पास होते हो गोया
दिल-बस्तगी सी है किसी ज़ुल्फ़-ए-दोता के साथ
हम समझते हैं आज़माने को
तुम भी रहने लगे ख़फ़ा साहब
एजाज़-ए-जाँ-दही है हमारे कलाम को
थी वस्ल में भी फ़िक्र-ए-जुदाई तमाम शब
ता न पड़े ख़लल कहीं आप के ख़्वाब-ए-नाज़ में