क्यूँ ज़र्द है रंग किस लिए आँसू लाल
किस वास्ते हर घड़ी रहे है तू निढाल
क्या शक्ल पे बन गई है तेरी 'मोमिन'
क्या हो गया तुझ को क्यूँ है तेरा ये हाल
Allama Iqbal
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डर तो मुझे किस का है कि मैं कुछ नहीं कहता
ने जाए वाँ बने है ने बिन जाए चैन है
है कुछ तो बात 'मोमिन' जो छा गई ख़मोशी
रोया करेंगे आप भी पहरों इसी तरह
हो गया राज़-ए-इश्क़ बे-पर्दा
थी वस्ल में भी फ़िक्र-ए-जुदाई तमाम शब
'मोमिन' ख़ुदा के वास्ते ऐसा मकाँ न छोड़
तुम हमारे किसी तरह न हुए
तासीर सब्र में न असर इज़्तिराब में
बे-ख़ुद थे ग़श थे महव थे दुनिया का ग़म न था
मोमिन ये असर सियाह-मस्ती का न हो
माशूक़ से भी हम ने निभाई बराबरी