तुम हमारे किसी तरह न हुए
वर्ना दुनिया में क्या नहीं होता
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राज़-ए-निहाँ ज़बान-ए-अग़्यार तक न पहुँचा
दुश्नाम-ए-यार तब्-ए-हज़ीं पर गिराँ नहीं
आप की कौन सी बढ़ी इज़्ज़त
ग़ैरों पे खुल न जाए कहीं राज़ देखना
उस ग़ैरत-ए-नाहीद की हर तान है दीपक
ये उज़्र-ए-इम्तिहान-ए-जज़्ब-ए-दिल कैसा निकल आया
सौदा था बला-ए-जोश पर रात
हो गया राज़-ए-इश्क़ बे-पर्दा
धो दिया अश्क-ए-नदामत ने गुनाहों को मिरे
हाल-ए-दिल यार को लिखूँ क्यूँकर
तुम भी रहने लगे ख़फ़ा साहब
हँस हँस के वो मुझ से ही मिरे क़त्ल की बातें