धो दिया अश्क-ए-नदामत ने गुनाहों को मिरे
तर हुआ दामन तो बारे पाक दामन हो गया
Javed Akhtar
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Mir Taqi Mir
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Gulzar
Jaun Eliya
Allama Iqbal
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दीदा-ए-हैराँ ने तमाशा किया
एजाज़-ए-जाँ-दही है हमारे कलाम को
ग़ुस्सा बेगाना-वार होना था
माशूक़ से भी हम ने निभाई बराबरी
बहर-अयादत आए वो लेकिन क़ज़ा के साथ
हाल दिल यार को लिक्खूँ क्यूँकर
इतनी कुदूरत अश्क में हैराँ हूँ क्या कहूँ
उम्र तो सारी कटी इश्क़-ए-बुताँ में 'मोमिन'
हम-रंग लाग़री से हूँ गुल की शमीम का
बे-ख़ुद थे ग़श थे महव थे दुनिया का ग़म न था
अफ़सोस शिकायत-ए-निहानी न गई
वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो कि न याद हो