दीदा-ए-हैराँ ने तमाशा किया
देर तलक वो मुझे देखा किया
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दिल-बस्तगी सी है किसी ज़ुल्फ़-ए-दोता के साथ
दुश्नाम-ए-यार तब्-ए-हज़ीं पर गिराँ नहीं
शब जो मस्जिद में जा फँसे 'मोमिन'
डर तो मुझे किस का है कि मैं कुछ नहीं कहता
ताब-ए-नज़्ज़ारा नहीं आइना क्या देखने दूँ
है किस का इंतिज़ार कि ख़्वाब-ए-अदम से भी
एजाज़-ए-जाँ-दही है हमारे कलाम को
हाथ टूटें मैं ने गर छेड़ी हों ज़ुल्फ़ें आप की
मोमिन ये असर सियाह-मस्ती का न हो
तुम भी रहने लगे ख़फ़ा साहब
ले शब-ए-वस्ल-ए-ग़ैर भी काटी
दिल क़ाबिल-ए-मोहब्बत-ए-जानाँ नहीं रहा