इतनी कुदूरत अश्क में हैराँ हूँ क्या कहूँ
दरिया में है सराब कि दरिया सराब में
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मैं भी कुछ ख़ुश नहीं वफ़ा कर के
कल तुम जो बज़्म-ए-ग़ैर में आँखें चुरा गए
तुम हमारे किसी तरह न हुए
इम्तिहाँ के लिए जफ़ा कब तक
गो आप ने जवाब बुरा ही दिया वले
इस वुसअत-ए-कलाम से जी तंग आ गया
महशर में पास क्यूँ दम-ए-फ़रियाद आ गया
राज़-ए-निहाँ ज़बान-ए-अग़्यार तक न पहुँचा
हो गया राज़-ए-इश्क़ बे-पर्दा
हाल-ए-दिल यार को लिखूँ क्यूँकर
अब शोर है मिसाल-ए-जुदी इस ख़िराम को
दीदा-ए-हैराँ ने तमाशा किया