महशर में पास क्यूँ दम-ए-फ़रियाद आ गया
रहम उस ने कब किया था कि अब याद आ गया
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Rahat Indori
Gulzar
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Wasi Shah
Allama Iqbal
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(712) Peoples Rate This
बे-ख़ुद थे ग़श थे महव थे दुनिया का ग़म न था
उल्टे वो शिकवे करते हैं और किस अदा के साथ
शब जो मस्जिद में जा फँसे 'मोमिन'
मेरे तग़ईर-ए-रंग को मत देख
डर तो मुझे किस का है कि मैं कुछ नहीं कहता
हुई तासीर आह-ओ-ज़ारी की
मैं भी कुछ ख़ुश नहीं वफ़ा कर के
वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो कि न याद हो
ठानी थी दिल में अब न मिलेंगे किसी से हम
है किस का इंतिज़ार कि ख़्वाब-ए-अदम से भी
ग़ुस्सा बेगाना-वार होना था