हुई तासीर आह-ओ-ज़ारी की

हुई तासीर आह-ओ-ज़ारी की

रह गई बात बे-क़रारी की

शिकवा-ए-दुश्मनी करें किस से

वाँ शिकायत है दोस्त-दारी की

मुब्तला-ए-शब-ए-फ़िराक़ हुए

ज़िद से हम तीरा-रोज़गारी की

याद आई जो गर्म-जोशी-ए-यार

दीदा-ए-तर ने शोला-बारी की

क्यूँ न डर जाऊँ देख कर वो ज़ुल्फ़

है शब-ए-हिज्र की सी तारीकी

यास देखो कि ग़ैर से कह दी

बात अपनी उमीद-वारी की

बस कि है यार की कमर का ख़याल

शेर की सूझती है बारीकी

कर दे रोज़-ए-जज़ा शब-ए-दीजूर

ज़ुल्मत अपनी सियाहकारी की

तेरे अबरू की याद में हम ने

नाख़ुन-ए-ग़म से दिल-फ़िगारी की

क़त्ल-ए-दुश्मन का है इरादा उसे

ये सज़ा अपनी जाँ-निसारी की

क्या मुसलमाँ हुए कि ऐ 'मोमिन'

हासिल उस बुत से शर्मसारी की

(637) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Hui Tasir Aah-o-zari Ki In Hindi By Famous Poet Momin Khan Momin. Hui Tasir Aah-o-zari Ki is written by Momin Khan Momin. Complete Poem Hui Tasir Aah-o-zari Ki in Hindi by Momin Khan Momin. Download free Hui Tasir Aah-o-zari Ki Poem for Youth in PDF. Hui Tasir Aah-o-zari Ki is a Poem on Inspiration for young students. Share Hui Tasir Aah-o-zari Ki with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.