चारा-ए-दिल सिवाए सब्र नहीं
सो तुम्हारे सिवा नहीं होता
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वादे की जो साअत दम-ए-कुश्तन है हमारा
जूँ निकहत-ए-गुल जुम्बिश है जी का निकल जाना
ले शब-ए-वस्ल-ए-ग़ैर भी काटी
वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो कि न याद हो
डर तो मुझे किस का है कि मैं कुछ नहीं कहता
न करो अब निबाह की बातें
न इंतिज़ार में याँ आँख एक आन लगी
धो दिया अश्क-ए-नदामत ने गुनाहों को मिरे
डरता हूँ आसमान से बिजली न गिर पड़े
माशूक़ से भी हम ने निभाई बराबरी
आँखों से हया टपके है अंदाज़ तो देखो