तू कहाँ जाएगी कुछ अपना ठिकाना कर ले
हम तो कल ख़्वाब-ए-अदम में शब-ए-हिज्राँ होंगे
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अदम में रहते तो शाद रहते उसे भी फ़िक्र-ए-सितम न होता
हम समझते हैं आज़माने को
ऐ आरज़ू-ए-क़त्ल ज़रा दिल को थामना
वो आए हैं पशेमाँ लाश पर अब
अब शोर है मिसाल-ए-जुदी इस ख़िराम को
है किस का इंतिज़ार कि ख़्वाब-ए-अदम से भी
दिल-बस्तगी सी है किसी ज़ुल्फ़-ए-दोता के साथ
दीदा-ए-हैराँ ने तमाशा किया
दुश्नाम-ए-यार तब्-ए-हज़ीं पर गिराँ नहीं
माशूक़ से भी हम ने निभाई बराबरी
पैहम सुजूद पा-ए-सनम पर दम-ए-विदा
मैं अगर आप से जाऊँ तो क़रार आ जाए