मकाँ है क़ब्र जिसे लोग ख़ुद बनाते हैं
मैं अपने घर में हूँ या मैं किसी मज़ार में हूँ
Jaun Eliya
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रंगों की वहशतों का तमाशा थी बाम-ए-शाम
ख़ूब-सूरत ज़िंदगी को हम ने कैसे गुज़ारा
बेगानगी का अब्र-ए-गिराँ-बार खुल गया
रहता है इक हर उस सा क़दमों के साथ साथ
ज़िंदा रहें तो क्या है जो मर जाएँ हम तो क्या
पागल-पन
इक तेज़ रा'द जैसी सदा हर मकान में
कोई ओझल दुनिया है
दूरी
तू
हमेशा देर कर देता हूँ
डराए गए शहरों के बातिन