हिदायत शैख़ करते थे बहुत बहर-ए-नमाज़ अक्सर
जो पढ़ना भी पड़ी तो हम ने टाली बे-वज़ू बरसों
Jaun Eliya
Gulzar
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(365) Peoples Rate This
हुजूम-ए-रंज-ओ-ग़म-ओ-दर्द है मरूँ क्यूँकर
शायद मिज़ाज हम से मुकद्दर है यार का
चार बोसे तो दिया कीजिए तनख़्वाह मुझे
सुब्हा से मतलब न कुछ ज़ुन्नार से
वस्ल से तब भरे हमारा पेट
मलक-उल-मौत मोअज़्ज़िन है मिरा वस्ल की रात
कुछ ग़रज़ वज्ह मुद्दआ बाइस
जो तेरे गुनह बख़्शेगा वाइ'ज़ वो मिरे भी
ज़ीनत-ए-उनवाँ है मज़मूँ आलम-ए-तौहीद का
फल है उस बुत की आश्नाई का
ईजाद ग़म हुआ दिल-ए-मुज़्तर के वास्ते