न शरमाओ आँखें मिला कर तो देखो
मुलाक़ात है हम से तुम से कभी की
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दिखा ऐ नाख़ुन-ए-ग़म लुत्फ़-ए-बाहम ऐसे सामाँ पर
मिरी जानिब को करवट ले के गर मुझ से लिपट जाओ
जो हुस्न-ओ-इश्क़ का हम-वज़्न इम्तिहाँ ठहरा
गर तअ'ल्ली पर है वहम-ए-इम्तिहान-ए-मय-फ़रोश
सरिश्क-ए-चश्म दिखाते हैं गर्मियाँ अपनी
हो अगर मद्द-ए-नज़र गुलशन में ऐ गुलफ़ाम रक़्स
मुझ को रोते देख कर पास आए वो तफ़्हीम को
वो हवा-ख़्वाह-ए-नसीम-ए-ज़ुल्फ़ हूँ मैं तीरा-बख़्त
मैं वो शैदा-ए-गेसू हूँ कि अक्सर मौसम-ए-गुल में
मिसरे पे उन के मिस्रा-ए-क़द का गुमाँ हुआ
उस बुत को दिल दिखा के कलेजा दिखा दिया