रोता हूँ मैं तसव्वुर-ए-ज़ुल्फ़-ए-सियाह में
पानी बरस रहा है जमे हैं घटा के रंग
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हो अगर मद्द-ए-नज़र गुलशन में ऐ गुलफ़ाम रक़्स
नीम-जाँ हूँ ज़िंदगी दूद-ए-चराग़-ए-कुश्ता है
दिल है निसार मर्दुमक-ए-चश्म-ए-दोस्त पर
उस बुत को दिल दिखा के कलेजा दिखा दिया
हट न कर ऐ दुख़्त-ए-रज़ बेताबियाँ बढ़ जाएँगी
ब-शक्ल-ए-नाख़ुन-ए-अंगुश्त सर कटाने से
साफ़ क्या हो सोहबत-ए-ज़ाहिर से बातिन का ग़ुबार
मिसरे पे उन के मिस्रा-ए-क़द का गुमाँ हुआ
अदब बख़्शा है ऐसा रब्त-ए-अल्फ़ाज़-ए-मुनासिब ने
मुझ को रोते देख कर पास आए वो तफ़्हीम को
सरिश्क-ए-चश्म दिखाते हैं गर्मियाँ अपनी