अदब बख़्शा है ऐसा रब्त-ए-अल्फ़ाज़-ए-मुनासिब ने
दो-ज़ानू है मिरी तब-ए-रसा तरकीब-ए-उर्दू से
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न शरमाओ आँखें मिला कर तो देखो
नीम-जाँ हूँ ज़िंदगी दूद-ए-चराग़-ए-कुश्ता है
उस बुत को दिल दिखा के कलेजा दिखा दिया
दिखा ऐ नाख़ुन-ए-ग़म लुत्फ़-ए-बाहम ऐसे सामाँ पर
वो हवा-ख़्वाह-ए-नसीम-ए-ज़ुल्फ़ हूँ मैं तीरा-बख़्त
मैं वो शैदा-ए-गेसू हूँ कि अक्सर मौसम-ए-गुल में
साफ़ क्या हो सोहबत-ए-ज़ाहिर से बातिन का ग़ुबार
दिल है निसार मर्दुमक-ए-चश्म-ए-दोस्त पर
जो हुस्न-ओ-इश्क़ का हम-वज़्न इम्तिहाँ ठहरा
ब-शक्ल-ए-नाख़ुन-ए-अंगुश्त सर कटाने से
हो अगर मद्द-ए-नज़र गुलशन में ऐ गुलफ़ाम रक़्स