दिल है निसार मर्दुमक-ए-चश्म-ए-दोस्त पर
बीमार को है मर्दुम-ए-बीमार से ग़रज़
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ब-शक्ल-ए-नाख़ुन-ए-अंगुश्त सर कटाने से
गर तअ'ल्ली पर है वहम-ए-इम्तिहान-ए-मय-फ़रोश
नीम-जाँ हूँ ज़िंदगी दूद-ए-चराग़-ए-कुश्ता है
वो हवा-ख़्वाह-ए-नसीम-ए-ज़ुल्फ़ हूँ मैं तीरा-बख़्त
मुझ को रोते देख कर पास आए वो तफ़्हीम को
मिरी जानिब को करवट ले के गर मुझ से लिपट जाओ
अदब बख़्शा है ऐसा रब्त-ए-अल्फ़ाज़-ए-मुनासिब ने
मैं वो शैदा-ए-गेसू हूँ कि अक्सर मौसम-ए-गुल में
साफ़ क्या हो सोहबत-ए-ज़ाहिर से बातिन का ग़ुबार
दिखा ऐ नाख़ुन-ए-ग़म लुत्फ़-ए-बाहम ऐसे सामाँ पर