हट न कर ऐ दुख़्त-ए-रज़ बेताबियाँ बढ़ जाएँगी
गिर पड़ेगी पाँव पर दस्तार-ए-मीना देखना
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दिल है निसार मर्दुमक-ए-चश्म-ए-दोस्त पर
मज़मून-ए-इश्क़ ज़ेहन-ए-सितमगर में आ गया
ब-शक्ल-ए-नाख़ुन-ए-अंगुश्त सर कटाने से
मैं वो शैदा-ए-गेसू हूँ कि अक्सर मौसम-ए-गुल में
वो हवा-ख़्वाह-ए-नसीम-ए-ज़ुल्फ़ हूँ मैं तीरा-बख़्त
उस बुत को दिल दिखा के कलेजा दिखा दिया
न शरमाओ आँखें मिला कर तो देखो
अदब बख़्शा है ऐसा रब्त-ए-अल्फ़ाज़-ए-मुनासिब ने
मिसरे पे उन के मिस्रा-ए-क़द का गुमाँ हुआ
हो अगर मद्द-ए-नज़र गुलशन में ऐ गुलफ़ाम रक़्स
नीम-जाँ हूँ ज़िंदगी दूद-ए-चराग़-ए-कुश्ता है