माना कि तेरा मुझ से कोई वास्ता नहीं
मिलने के ब'अद मुझ से ज़रा आइना भी देख
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जुनूँ का ज़िक्र मिरा आम हो गया तो क्या
इक बार ही जी भर के सज़ा क्यूँ नहीं देते
सदा ये किस की है जो दूर से बुलाए मुझे
मुझे की गई है ये पेशकश कि सज़ा में होंगी रियायतें
दुनिया को देखिए ज़रा आँखें तो खोलिए
ग़ैर के आगे ये सर ख़म देखिए कब तक रहे
चेहरे पे मेरे रंग परेशानियों का है
जीते-जी मेरे हर इक मुझ पे ही तन्क़ीद करे
वअ'दा जो था निबाह का तुम ने वफ़ा नहीं किया
चेहरे की चाँदनी पे न इतना भी मान कर
बे-हिस ओ कज-फ़हम ओ ला-परवा कहे
सादगी यूँ आज़माई जाएगी