बराबर ख़्वाब से चेहरों की हिजरत देखते रहना

बराबर ख़्वाब से चेहरों की हिजरत देखते रहना

गुज़र चुकने पे भी वो शाम-ए-रहलत देखते रहना

धनक की बारिशें बरफ़ाब शहरों पर नहीं होतीं

यहाँ फूलों का रस्ता उम्र भर मत देखते रहना

किताबों की तहों में ढूँढना ना-दीदा अश्या का

पलट कर फिर कोई ख़ाली इबारत देखते रहना

हुजूम-ए-शहर के सन्नाटे में गुम-सुम वो टीला सा

उसी को आते जाते बे-ज़रूरत देखते रहना

जिसे मैं छू नहीं सकता दिखाई क्यूँ वो देता है

फ़रिश्तों जैसी बस मेरी इबादत देखते रहना

'मुसव्विर' कुछ न कहने का ये दुख भी सख़्त ज़ालिम है

तलब कर लेगी लफ़्ज़ों की अदालत देखते रहना

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In Hindi By Famous Poet Musavvir Sabzwari. is written by Musavvir Sabzwari. Complete Poem in Hindi by Musavvir Sabzwari. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.