थे उस के साथ ज़वाल-ए-सफ़र के सब मंज़र
वो दुखते दिल के बहुत संग-ए-मील छोड़ गया
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लहू-लुहान था शाख़-ए-गुलाब काट के वो
सजनी की आँखों में छुप कर जब झाँका
हिसार-ए-गोश-ए-समाअत की दस्तरस में कहाँ
पहचान का असासा वो जब हार आएगा
देखो कोई ख़्वाब दिन ढले का
मैं संग-ए-रह नहीं जो उठा कर तू फेंक दे
जो ख़स-ए-बदन था जला बहुत कई निकहतों की तलाश में
कई ज़मानों के दरिया-ए-नील छोड़ गया
कनार-ए-आब हवा जब भी सनसनाती है
मैं आँधी में रेज़ा रेज़ा इक फूल चुन रहा हूँ
तह-ब-तह दरिया के सब असरार तक वो ले गया
हमारी तहरीरें वारदातें बहुत ज़माने के बाद होंगी