Ghazals of Mushaf Iqbal Tausifi

Ghazals of Mushaf Iqbal Tausifi
नाममुसहफ़ इक़बाल तौसिफ़ी
अंग्रेज़ी नामMushaf Iqbal Tausifi
जन्म की तारीख1940
जन्म स्थानHyderabad

ज़िक्र तेरा करेंगे फिर तुझ से

ये कैसा खेल है अब उस से बात भी कर लूँ

याद फिर आई तिरी मौसम सलोना हो गया

सदा ज़-फ़ैज़-ए-असर ख़ामुशी न बन जाए

रात ख़्वाबों ने परेशाँ कर दिया

निश्तरों पर जिस्म सारा रख दिया

कोई बीमार पड़ जाए तो अच्छा कैसे करते हो

किस ने दिया है किस का सात

किस दश्त-ए-तलब में खो गए हम

ख़्वाब हूँ मैं तो मिरी ज़ात से पहले क्या था

कभी हँस रहा था कभी गा रहा था

जो बीती है जो बीतेगी सब अफ़्साने लगे हम को

जाने किस लिए रूठी ऐसे ज़िंदगी हम से

हम थे किसी का ध्यान था वो भी नहीं रहा

हम तिरा साया थे साया हो के

हिकायत-ए-दिल-ए-महज़ूँ न क़िस्सा-ए-मजनूँ

इक ख़्वाब थी ज़िंदगी हमारी

एक ग़म है उसे अपना जानें

चश्म-ओ-गोश पे पहरे हैं

चाँद ने अपना दीप जलाया शाम बुझी वीराने में

अश्कों से ब-रंग-ए-आब हम ने

अपनी ही आवारगी से डर गए

अपना शहकार अभी ऐ मिरे बुत-गर न बना

अब किसी को देख कर इक सम्त मुड़ जाते हैं हम

आती जाती साँस कैसे तेरे ग़म से मन गई

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