दिल दुखा ही करे है सीने में
याँ यही सुब्ह ओ शाम आफ़त है
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यूँ चलते हैं लोग राह ज़ालिम
जाने दे टुक चमन में मुझे ऐ सबा सरक
गर हम से न हो वो दिल-सिताँ एक
इतना जो हम से रहते हो बेगाना मेरी जान
रखें हैं जी में मगर मुझ से बद-गुमानी आप
कुछ शेर-ओ-शायरी से नहीं मुझ को फ़ाएदा
अब मिरी बात जो माने तो न ले इश्क़ का नाम
हूँ मुशव्वश मुझे इस दम न लगा हाथ सबा
पैवस्ता गर्द-ए-दश्त रही गर तह-ए-दरूँ
किस वक़्त जुदा मुझ से वो कम्बख़्त हुई थी
शब में वाँ जाऊँ तो जाऊँ किस तरह
लुट के मंज़िल से कोई यूँ तो न आया होगा