कुछ शेर-ओ-शायरी से नहीं मुझ को फ़ाएदा
इल्ला हुसूल-ए-काविश-ए-बे-जा-ए-ख़ल्क़ है
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ख़रीदार अपना हम को जानते हो
इस हवा में कर रहे हैं हम तिरा ही इंतिज़ार
मेहनत पे टुक नज़र कर सूरत गर अज़ल ने
तुझ बिन तो कभी गुल के तईं बू न करूँ मैं
या थी हवस-ए-विसाल दिन रात
औरों की तरफ़ तू देखता है
बंद भी आँखों को ज़री कीजिए
उस्तुख़्वाँ-बंदी-ए-अल्फ़ाज़ का आलम तू देख
फ़रियाद को मजनूँ की सुने कौन जहाँ हों
जब तक कि तिरी गालियाँ खाने के नहीं हम
ऐ दिल-ए-बे-जुरअत इतनी भी न कर बे-जुरअती
उस के कूचे में पुकारेगा अगर मुझ को रक़ीब