फ़रियाद को मजनूँ की सुने कौन जहाँ हों
लिक्खूँ दिल-ए-नालाँ जरस-ए-महमिल-ए-लैला
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रखता है क़दम नाज़ से जिस दम तू ज़मीं पर
है ईद का दिन आज तो लग जाओ गले से
चमन को आग लगावे है बाग़बाँ हर रोज़
कब लग सके जफ़ा को उस की वफ़ा-ए-आलम
मज्लिस में उस की अब तो दरबार सा लगे है
अदम वालों की सोहबत से भी नफ़रत हो गई अब तो
न प्यारे ऊपर ऊपर माल हर सुब्ह-ओ-मसा चक्खो
कुछ इस क़दर नहीं सफ़र-ए-हस्ती-ओ-अदम
दम ग़नीमत है कि वक़्त-ए-ख़ुश-दिली मिलता नहीं
रात पर्दे से ज़रा मुँह जो किसू का निकला
हम से पाई नहीं जाती कमर उस की ऐ ज़ुल्फ़
जो दम हुक़्क़े का दूँ बोले कि ''मैं हुक़्क़ा नहीं पीता''