रखता है क़दम नाज़ से जिस दम तू ज़मीं पर
कहते हैं फ़रिश्ते तुझे जय अर्श-ए-बरीं पर
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ऐ इश्क़ तेरी अब के वो तासीर क्या हुई
अब जिस दिल-ए-ख़्वाबीदा की खुलती नहीं आँखें
कह दो मजनूँ से करे अपनी सवारी तय्यार
ज़ेर-ए-नक़ाब आब-गूँ हाए-रे उन की जालियाँ
दर तलक आ के टुक आवाज़ सुना जाओ जी
ले गया काजल चुरा दुज़्द-ए-हिना
जब तक ये मोहब्बत में बदनाम नहीं होता
हसरत पे उस मुसाफ़िर-ए-बे-कस की रोइए
है ईद का दिन आज तो लग जाओ गले से
तू मेरे सामने बैठा है आह तिस पर भी
उस्ताद कोई ज़ोर मिला क़ैस को शायद
गर अब्र घिरा हुआ खड़ा है