फ़िक्र-ए-सुख़न तलाश-ए-मआश ओ ख़याल-ए-यार
ग़म कम हुआ तो हाँ दिल-ए-बे-ग़म से होवेगा
Anwar Masood
Gulzar
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Jaun Eliya
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Mir Taqi Mir
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इन दिनों शहर से जी सख़्त ब-तंग आया है
तू गोश-ए-दिल से सुने उस को गर बत-ए-बे-मेहर
कब शब-ए-वस्ल वो आया कि मिरे और उस के
जब कि बे-पर्दा तू हुआ होगा
इसी सबब तो परेशाँ रहा मैं दुनिया में
अभी अपने मर्तबा-ए-हुस्न से मियाँ बा-ख़बर तू हुआ नहीं
जलता है जिगर तो चश्म नम है
मय पीने से वो आरिज़ क्या और हो गए थे
इधर से झाँकते हैं गह उधर से देख लेते हैं
शिफ़ा नसीब मिरे क्यूँ के हो कि ऐ यारो
आना है यूँ मुहाल तो इक शब ब-ख़्वाब आ
आज की शब गर रहेंगे 'मुसहफ़ी' बैरून-ए-दर