फ़लक की ख़बर कब है ना-शाइरों को
यूँही घर में बैठे हवा बाँधते हैं
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यार रोते रहे सब रूह ने परवाज़ किया
ख़्वाहिश-ए-वस्ल का मज़मूँ जो किसी सत्र में था
मेरे और यार के पर्दा तो नहीं कुछ लेकिन
उस रश्क-ए-मह की याद दिलाती है चाँदनी
ख़्वारियाँ बदनामियाँ रुस्वाइयाँ
मारे हया के हम से वो कल बोलता न था
नफ़ी ओ इसबात का हंगामा रहा उस कू मैं
ग़ुबार-ए-दिल को में मिज़्गान-ए-यार से झाड़ा
दूर से मुझ को न मुँह अपना दिखाओ जाओ
हम भी हैं तिरे हुस्न के हैरान इधर देख
ब'अद-ए-मुर्दन की भी तदबीर किए जाता हूँ
पीछे पड़ी हैं दिल के बे-तरह मेरी आँखें