अदम वालों की सोहबत से भी नफ़रत हो गई अब तो
कोई वीराना अब सू-ए-अदम आबाद करते हैं
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मातम में फ़ौत-ए-उम्र के रोता हूँ रात दिन
आए हो तो ये हिजाब क्या है
इस रंग से अपने घर न जाना
इस गोशा-ए-उज़्लत में तन्हाई है और मैं हूँ
ऐ दिल-ए-बे-जुरअत इतनी भी न कर बे-जुरअती
दिल डूब गया टूट गया सब्र का लंगर
रक्खा है ठौर मुझ को कहरवे के नाच ने
हम से वो बे-सबब उलझती है
जिस्म ने रूह-ए-रवाँ से ये कहा तुर्बत में
मैं निगाह-ए-पाक से देखे था तिरे हुस्न-ए-पाक को इस पे भी
सोहबत है तिरे ख़याल के साथ
जिस कू मैं हो गुज़ार-ए-परी-तलअतान-हिन्द