जिस्म ने रूह-ए-रवाँ से ये कहा तुर्बत में
अब मुझे छोड़ के तन्हा तू कहाँ जाती है
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दिल दुखा ही करे है सीने में
जब कि बे-पर्दा तू हुआ होगा
गर रहूँ शहर में हो दूद के बाइस ख़फ़क़ाँ
हम भी हैं तिरे हुस्न के हैरान इधर देख
क्या काम किया तुम ने थी ये भी अदा कोई
मंज़िल-ए-मर्ग के आ पहुँचे हैं नज़दीक अब तो
मारे हया के हम से वो कल बोलता न था
ग़ुबार-ए-दिल को में मिज़्गान-ए-यार से झाड़ा
जमुना में कल नहा कर जब उस ने बाल बाँधे
आसमाँ को निशाना करते हैं
आज की शब गर रहेंगे 'मुसहफ़ी' बैरून-ए-दर
उस गुल का पता गर नहीं देते हो तो यारो