क्या काम किया तुम ने थी ये भी अदा कोई
पर्दे से निकल आना और जी में समा जाना
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Jaun Eliya
Wasi Shah
Javed Akhtar
Gulzar
Anwar Masood
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(284) Peoples Rate This
आलम इस कार-ए-सन'अ का है तुर्फ़ा कि याँ
आतिश-ए-ग़म में बस कि जलते हैं
क्या किया उस का किसू ने बाग़ से जाती रही
'मुसहफ़ी' हम तो ये समझे थे कि होगा कोई ज़ख़्म
कब ख़ूँ में भरा दामन-ए-क़ातिल नहीं मालूम
है माह कि आफ़्ताब क्या है
ये कब ख़याल में लाते हैं ताज-ए-शाही को
फ़रियाद को मजनूँ की सुने कौन जहाँ हों
अव्वल तो थोड़ी थोड़ी चाहत थी दरमियाँ में
सज्दा करता हूँ मैं मेहराब समझ कर उस को
चश्म-ए-लैला का जो आलम है उन्हों की चश्म में
क्यूँ कि कहिए कि अदा-बंदी है