दिल डूब गया टूट गया सब्र का लंगर
हो कश्ती-ए-तन क्यूँ न परेशान-ए-तलातुम
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हल्क़ा-ए-ज़ंजीर से निकला न ये पा-ए-जुनूँ
अमआ की परी माने-ए-पर्वाज़ है जिस तरह
वाँ लाल फड़कता है अमीरों के क़फ़स में
सौदा है ये किस ज़ुल्फ़ का इस को जो हमेशा
शब-ए-हिज्राँ क्या सियाही न हुई रोज़-ए-सफ़ेद
मोहब्बत ने किया क्या न आनें निकालीं
ख़ुदा हम तो शब-ए-फ़िराक़ से मजबूर हो गए
इस वास्ते फ़ुर्क़त में जीता मुझे रक्खा है
दिल सीने में बेताब है दिलदार किधर है
मैं ने किस चश्म के अफ़्साने को आग़ाज़ किया
लोग कहते हैं मोहब्बत में असर होता है
महरूम है नामा-दार-ए-दुनिया