ऐ दिल-ए-बे-जुरअत इतनी भी न कर बे-जुरअती
जुज़ सबा उस गुल का इस दम पासबाँ कोई नहीं
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नहीं करती असर फ़रियाद मेरी
शब हम को जो उस की धुन रही है
किस वक़्त जुदा मुझ से वो कम्बख़्त हुई थी
तुम भी आओगे मिरे घर जो सनम क्या होगा
दिल में है उस के मुद्दई का इश्क़
कहिए जो झूट तो हम होते हैं कह के रुस्वा
गर जोश पे टुक आया दरियाव तबीअत का
उस के दहान-ए-तंग में जा-ए-सुख़न नहीं
तू खुले बालों मिरे सामने आया मत कर
नसीम-ए-सुब्ह-ए-चमन से इधर नहीं आती
तड़ावे के लिए है ख़्वान पोश महर-ओ-मह नादाँ
वो आहू-ए-रमीदा मिल जाए तीरा-शब गर