अहल-ए-नसीहत जितने हैं हाँ उन को समझा दें ये लोग
मैं तो हूँ समझा-समझाया मुझ को क्या समझाते हैं
Rahat Indori
Wasi Shah
Anwar Masood
Allama Iqbal
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
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तूर पर अपने किसी दिन भी ख़ुर-ओ-ख़्वाब है याँ
किस की ख़ातिर को मुक़द्दम रख्खूँ मैं हैरान हूँ
अल्लाह-रे तेरे सिलसिला-ए-ज़ुल्फ़ की कशिश
जलता है जिगर तो चश्म नम है
बुलबुलो बाग़बाँ को क्यूँ छेड़ा
चाहता हूँ उस को मैं वो चाहता मुझ को नहीं
साक़ी मय-ख़ाना का गर कम-दही पर है मिज़ाज
न आया शाम भी घर फिर के अपने
घटती है शब-ए-वस्ल तो कहता हूँ मैं या-रब
आस्तीं उस ने जो कुहनी तक चढ़ाई वक़्त-ए-सुब्ह
शेर दौलत है कहाँ की दौलत
सच इश्क़ में हैं आशिक़ ओ माशूक़ बराबर