किस की ख़ातिर को मुक़द्दम रख्खूँ मैं हैरान हूँ
गब्र की जानिब हूँ या-रब या मुसलमाँ की तरफ़
Wasi Shah
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(309) Peoples Rate This
गर मज़ा चाहो तो कतरो दिल सरौते से मिरा
ऐ इश्क़ जहाँ है यार मेरा
क्या नाज़ुकी बदन की उस रश्क-ए-गुल के कहिए
अक्स से अपने अगर राह नहीं तुम को तो जान
ऐ इश्क़ तेरी अब के वो तासीर क्या हुई
सोते हैं हम ज़मीं पर क्या ख़ाक ज़िंदगी है
ऊधर गया तू ग़ुस्ल को हम्माम की तरफ़
है तिरी कू में ख़बर हश्र के हंगामे की
ये गुम हुए हैं ख़याल-ए-विसाल-ए-जानाँ में
सैल-ए-गिर्या का मैं ममनूँ हूँ कि जिस की दौलत
वो आहू-ए-रमीदा मिल जाए तीरा-शब गर
तुझ को ऐ सय्याद काविश ही अगर मंज़ूर है