है तिरी कू में ख़बर हश्र के हंगामे की
पर मैं क्या जानूँ ये हंगामा किधर होता है
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यारान-ए-सुख़न-गो की है वो कंपनी अपनी
कुफ़्र और दीं में तग़ायर नहीं गर देखिए ख़ूब
तरह ओले की जो ख़िल्क़त में हम आबी होते
गर रहूँ शहर में हो दूद के बाइस ख़फ़क़ाँ
अज़-बस-कि तू प्यारा है मुझे तेरे सिवा यार
मैं किंगरा-ए-अर्श से पर मार के गुज़रा
बद-गुमानी ने मुझे क्या क्या सताया क्या कहूँ
बहुत दिलों को सताया है तू ने ऐ ज़ालिम
मैं क्यूँकर न रख्खूँ अज़ीज़ अपने दिल को
दूकान-ए-मय-फ़रोश पे गर आए मोहतसिब
मुझ से इक बात किया कीजिए बस
अपना रफ़ीक़-ओ-आश्ना ग़ैर-ए-ख़ुदा कोई नहीं