है यहाँ किस को दिमाग़ अंजुमन-आराई का
अपने रहने को मकाँ चाहिए तन्हाई का
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बाल अपने बढ़ाते हैं किस वास्ते दीवाने
हसरत पे उस मुसाफ़िर-ए-बे-कस की रोइए
दर तलक आ के टुक आवाज़ सुना जाओ जी
माह की आँख जो रहती है लगी ऊधर ही
ज़ुल्फ़ अगर दिल को फँसा रखती है
है मौसम-ए-बहार का आग़ाज़ क़हर है
तन्हा न वो हाथों की हिना ले गई दिल को
नसीम मुज़्तरिब-उल-हाल जाए थे पीछे
हर-चंद कि वो जवाँ नहीं हम
जब से मअ'नी-बंदी का चर्चा हुआ ऐ 'मुसहफ़ी'
न वो वादा-ए-सर-ए-राह है न वो दोस्ती न निबाह है
कुश्ता-ए-रंग-ए-हिना हूँ मैं ओजब इस का क्या