तन्हा न वो हाथों की हिना ले गई दिल को
मुखड़े के छुपाने की अदा ले गई दिल को
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बातों ने उस की हम को ख़ामोश कर दिया है
यादगार-ए-गुज़िश्तगाँ हैं हम
कपड़े बदल के आए थे आग मुझे लगा गए
तेरी इस्मत में हमें शक नहीं ऐ माया-ए-नाज़
क्या बैठना क्या उठना क्या बोलना क्या हँसना
शैख़-उल-हरम मोअज़्ज़िन दोनों चलन के बद हैं
इस में आलम की सब आबादी ओ वीराना है
मुझ से जो मेरी ज़ोहरा मिलती नहीं है अब तक
क्या वो भी चाव-चूज़ के दिन थे कि जिन दिनों
तर्रार ज़ुल्फ़-ए-यार अगर चर्ख़ पर चढ़े
जो मिला उस ने बेवफ़ाई की
मौसम-ए-होली है दिन आए हैं रंग और राग के