बातों ने उस की हम को ख़ामोश कर दिया है
आगे ज़बाँ थी लेकिन अब गोश कर दिया
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गरचे तुम ताज़ा गुल-ए-गुलशन-ए-रानाई हो
सुम्बुल को परेशान किया बाद-ए-सबा ने
जो परी भी रू-ब-रू हो तो परी को मैं न देखूँ
क्या तअज्जुब है अगर फिर के हो अहया मेरा
शब-ए-हिज्राँ थी मैं था और तन्हाई का आलम था
हर-चंद कि वो जवाँ नहीं हम
ने ज़ख़्म-ए-ख़ूँ-चकाँ हूँ न हल्क़-ए-बुरीदा हूँ
ख़्वारियाँ बदनामियाँ रुस्वाइयाँ
मिस्र को छोड़ के आई है जो हिंदुस्ताँ में
हैं यादगार-ए-आलम-ए-फ़ानी ये दिनों चीज़
उस्तुख़्वाँ-बंदी-ए-अल्फ़ाज़ का आलम तू देख
इस रंग से अपने घर न जाना