मिस्र को छोड़ के आई है जो हिंदुस्ताँ में
मेरे यूसुफ़ की ज़ुलेख़ा तू ख़रीदार है क्या
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सिधारी क़ुव्वत-ए-दिल ताब और ताक़त से कह दीजो
सुख़न में कामरानी कर रहा हूँ
ये रोज़ ढूँढ लाए है इक ख़ूब-रू नया
उस के मक़्तल में मिरा ख़ून बटा दस्त-ब-दस्त
ख़ुदा हम तो शब-ए-फ़िराक़ से मजबूर हो गए
बैठा था आ के क़ैस तो लैला के दर पे लेक
ध्यान बाँधूँ हूँ जो मैं उस की हम-आग़ोशी का
है ईद का दिन आज तो लग जाओ गले से
मैं क्या जानूँ क़लक़ क्या चीज़ है पर इतना जानूँ हूँ
दिल डूब गया टूट गया सब्र का लंगर
नमली और न दूदी है न मंशारी है
जो मुझ आतिश-नफ़्स ने मुँह लगाया उस को ऐ साक़ी