बैठा था आ के क़ैस तो लैला के दर पे लेक
दीवाना कोदकों के सताने से उठ गया
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जाने दे टुक चमन में मुझे ऐ सबा सरक
ख़ाक-ए-बदन तिरी सब पामाल होगी इक दिन
जो परी भी रू-ब-रू हो तो परी को मैं न देखूँ
उस की पड़ी न आँख ख़त-ओ-ख़ाल पर तिरे
हम तो उस कूचे में घबरा के चले आते हैं
मुसव्विरों ने क़लम रख दिए हैं हाथों से
ऐ फ़लक किस ने कहा था तुझे ये तो बतला
सौ बार तुम तो सामने आ कर चले गए
हरगिज़ न मुझ से साफ़ हुआ यार या नसीब
'मुसहफ़ी' हर घड़ी जाया न करो तुम साहिब
शब में देखी हैं पड़ी पाँव में ज़ंजीरें दो
जमुना में कल नहा कर जब उस ने बाल बाँधे