हरगिज़ न मुझ से साफ़ हुआ यार या नसीब
ख़त भी लिखा जो उस ने तो ख़त्त-ए-ग़ुबार में
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हो चुका नाज़ मुँह दिखाइए बस
उस के लहराने में चाल आई न मुतलक़ साँप की
शब में देखी हैं पड़ी पाँव में ज़ंजीरें दो
ज़ुल्फ़ अगर दिल को फँसा रखती है
क़िस्सा-ए-मजनूँ पसंद-ए-ख़ातिर जानाना है
दाग़-ए-पेशानी-ए-ज़ाहिद न गया जीते-जी
ऐ शब हिज्र कहीं तेरी सहर है कि नहीं
सामने उस के लगूँ रोने तो झुँझला के कहे
ग़बग़ब से बचा दिल तो ज़ख़ंदान में डूबा
गर देखिए तो आईना-ए-क़द-नुमा की शक्ल
जागा है रात प्यारे तू किस के घर जो तेरी
मुझ को पामाल कर गया है वही